" इबादत " | ibaadat poem | Simple Short Poem
ख्वाबों के आंचल में सोया थी एक परी
थी जेसे कोमन नादान अंचुयी एक कली..
पालकों के सिरहाने से दी एक ख्वाब ने दस्तक
ले जाने आया था कोई उसे है ज़मीन से फलक तक
शर्मीली सी सकुचायी सी चलती वो उस सफर पर
पता नहीं था कह तक लेगी उसे वो दागर..
हाथो में हाथ लिए संग जिसके चल रही थी वो
उम्मीद थी उसकी, विश्वास था उसका, प्यार था उसका वो..
अंजाने से अजनबी के साथ बुरा रही थी मंजिल की ओर
अभी तो शुरू हुए ही उसकी चाहत के दौर..
ख़ूबसूरत सा एक चेहरा बस चुका था उसकी आँखों में!
सुबह थी उसकी, शाम थी उसकी, अब वही थी उसकी रातों में!
सोच रही थी काश थम जाए ये लम्हा यही
उम्रभर इसी तरह साथ चले वो अब युहिन
चुरा के पालकों की नामी दी जिसने लबों पे हंसी
एक वही है बस उसके लिए था उसे पूरा यकीन..
फिर एक दिन कहीं किसी मोड़ पे..
ओझल होगाया वो दूर उसकी नज़रों से!
दूब गया था सूरज उसका
चुप गया चाँद बदलों में कहीं!
थम गई थी सासीन उसकी, रुक गई थी धड़कनें
हर जगह यूं बेबस होकर धुंधती राही नजरें...
समझ न आया हुआ कुन एसा...
नियति ने खेल ये खेला केसा !!
पालकों से में नूर बांके बह रही आंखों के नाम
सिसकते हुए सपनों का दर्द वो जुबान से केसे कहे...
प्यार का दर्द उसने क्यों सजा में पाया...
जाना ही था जो एक दिन उसे, तो कोई जिंदगी में ही क्यों आया!
खत्म हो गई थी उसकी वो खूबसूरत दास्तान
फिर भी धुंध रही है वो अपने सपनों की पहचान...
आज भी तनहाई में है बीते कल की लातें
आज भी दस्तक देके जाति है कल की आतीं..
खामोशी से इस दर्द को पीने की अब हमें आदत है
थी जो मोहब्बत ख्वाब उसका, वही अब उसकी इबादत है!
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